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What is gdp, GDP क्या है ?, GDP Calculate करने की जरूरत क्यों पड़ रही है?

 What is gdp, GDP क्या है ?, GDP Calculate करने की जरूरत क्यों पड़ रही है?

आपने बहुत बार news में या फिर अपने आस पास GDP के बारे में सुना होगा gross domestic product (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) ।

आखिर ये  GDP है क्या?


 

GROSS मतलब total और domestic मतलब India की political boundary के अंदर और Product में आते हैं goods and services जो 1 साल के अंदर produce हुए।        ..                            पैसा सिर्फ दो ही तरीके से कमा सकते हैं या तो आप कुछ produce करिये जैसे ही कुछ लोग car produce कर रहे हैं bottle produce कर रहे हैं, तो कोई Mobile, TV वगैरह या फिर आपको Services दीजिए। जैसे की डॉक्टर वकील ये लोग service देते है या फिर कोई company में काम करके Services देता है या फिर एक नाई है जो बाल काट के सर्विसेज देता है।

                                 इन सारे goods and services की जो value होती है, value मतलब आपने ₹100 में बाल काटे हैं तो ₹100 उसकी value हो गयी। आपने ₹10 में कोई बोतल खरीदी है तो ₹10 उसकी वैल्यू हो गयी। 1 साल के अंदर ये जितनी भी goods and services की वैल्यू होती है with in a country उसको जीडीपी बोलते हैं। अगर USA की कंपनी India में आके कुछ manufacture(मैन्युफैक्चर)  करेगी या बनाएगी तो इंडिया की GDP में count (काउंट) होगा वो USA की GDP में count नहीं होगा। इसलिए हम लोग इतना focus करते है Make in India के अंदर ।

                                 इसको example से समझते हैं, मान लीजिए कोई एक मॉल है उसमें कोई शॉप कपड़े बेच रही है, कोई शॉप बाल काट रही है, कोई टैरोकार्ड रीडर भविष्य बता रहा है, सर्विस दे रहा है, कोई बर्तन बेच रहा है और हर floor पे goods and services बेचे जा रहे हैं। अगर उस मॉल में हम हर बिकी हुई चीज़ की कीमत note कर लें और 1 साल तक करते रहे और last में उस सारी चीजों को add कर दे तो वो उस मॉल की GDP होगी। ठीक  इसी तरीके से देश में 1 साल के अंदर कितने GOODS AND SERVICES Produced हुए है वो उसका GDP होता है।

 GDP Calculate करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्यों इतने एफर्ट लगाए जा रहे हैं

 - इसको कैलकुलेट करने के लिए देखिये अगर GDP हर साल ऊपर जा रहा है, इसका मतलब की production country  के अंदर ज्यादा हो रहा है। देश की economy अच्छी है और अगर GDP हर साल नीचे जा रहा है तो इसका मतलब है कि देश के अंदर goods and services कम produce हो रहा है। जब कम productions होता है तो selling भी कम होती है और जब कम selling होगी तो इसका मतलब की जो बिज़नेस है वो कम पैसा कमाएंगे और कम पैसा कमाने का मतलब है कि लोगों की purchasing power कम हो रही है, economy down हो रही है।

                        GDP से हमें अपने देश के इकोनॉमिक हेल्थ का पता चलता है उसी के बेसिस पे गवर्नमेंट अपनी policy बनाती है। जब जीडीपी का डेटा आता है तो हमें अपनी shortcoming का पता चलता है और बिना shortcomings को पता करे हम उनको सुधार नहीं सकते है।

               पूरे वर्ल्ड में USA की जीडीपी number 1 पे है। USA की जीडीपी around 22.99 ट्रिलियन डॉलर है, और second chaina है with the economy of18 ट्रिलियन डॉलर और इंडिया की इकॉनमी 2.6 ट्रिलियन डॉलर है और change भी होती रहती है।

. GDP कैलकुलेट कैसे होता है?

 कोई कंपनी है उसने एक जगह से बैटरी खरीदी दूसरी जगह से चीप खरीदी और मोबाइल बना के बेच दिया। तो वो जो बैटरी खरीदी है उसका Price जीडीपी में add होगा की नहीं और अगर उसका price add होगा तो जो फाइनल मोबाइल बेचा जाएगा उस particular मोबाइल का price जीडीपी में ऐड होगा की नहीं और अगर दोनों का price जीडीपी में add होगा तो एक बैटरी का price दो बार काउंट हो रहा है जीडीपी में।

तो इससे जो हमारी जीडीपी के द्वारा प्रोडक्शन कैलकुलेट करने का जो process है वो गलत हो जाएगा। एक example से आपको समझाता हूँ मान लीजिए मुझे omlate खाना है, मैं मार्केट में जाके egg खरीदता हूँ तो उसका जो price होगा वो जीडीपी में add होगा, लेकिन वही पे अगर एक कोई बेकरी वाला है वो जाके egg खरीदता है, क्योंकि उसको केक बनाना है बेचने के लिए, तो वो जो egg का price होगा वो ऐड नहीं होगा बल्कि वो जो final product है, जो finished प्रॉडक्ट है cake  उसका प्राइस जीडीपी में add होगा। इसी तरीके से हर प्रॉडक्ट के लिए होता है। इन सारी चीजों का हिसाब central statistical ऑफिस रखता है की कौन सी चीज़ बिज़नेस owner pay करके ले रहा है और कौन कंज़्यूमर खरीद रहा है। इसमें वो प्रॉडक्ट काउंट होते हैं जो प्रोड्यूस होके बिके हैं।

             अब मैं अपने घर पे लकड़ी का कोई प्रॉडक्ट बना ले और अपने घर पे रख लू तो वो जे डी के प्रोडक्शन में काउंट नहीं होगा। जीडीपी में गुड्स ऐंड सर्विसेज के साथ साथ इन्वेस्टमेंट भी काउंट होता है।   

         जीडीपी 2 ही  case में बढ़ता है पहला तो यह है कि प्रोडक्शन ज्यादा से ज्यादा हुआ है गुड्स एंड सर्विसेज का और दूसरा case ये भी हो सकता है कि प्रोडक्शन उतना ना हुआ हो लेकिन prices बढ़ गए हो। जो पहला केस है उसको हम कहते हैं real GDP और जो दूसरा केस है जहाँ पे prices बढ़ने की वजह से जीडीपी बढ़ा है उसको हम कहते हैं nominal GDP। इसलिए जब गवर्नमेंट आपके सामने जीडीपी का डेटा रखती है तो आपको ध्यान देना है की वो real GDP है या फिर nominal GDP है। जीडीपी का जो मेन पर्पस हैं वो कंट्री के गुड्स ऐंड सर्विसेज का प्रोडक्शन बता सके, इसलिए जो दूसरा केस है जिसमें price की वजह से जीडीपी बढ़ रहा है अगर हम उसको consider करेंगे तो देश की actual economic नहीं पता चल पाएगी।

         इस चीज़ का solutions निकालने के लिए एक base year लिया गया जैसे की इंडिया में जो जीडीपी निकाला गया है वो 2011 2012 को base year लेके निकाला जाता है। जब आप news में जीडीपी का डेटा देखते होंगे तो दो तरीके से जीडीपी का डेटा लिखा होता है एक लिखा होता है GDP at  constant prices, दूसरा लिखा होता है GDP at current prices.

GDP at  constant prices जहाँ लिखा होता है उसका मतलब की 2011 को base year लिया गया है।GDP at current prices  का मतलब होता है की उसमें जो base year है वो current year लिया गया है।. 

           फैक्टरी के अंदर जब कोई प्रॉडक्ट बनता है तो उस टाइम पे उसमें टैक्स include नहीं होता उस समय जो उसका price होता है उसको factor priceबोलते हैं और जब उसमें टैक्स ऐड हो जाता है तो उसको market price कहते हैं। 2015 से पहले जीडीपी factor price से calculate होता था और उसके बाद से market price से कैलकुलेट हो रहा है। 

 

                  

एक घर है जिसमें चार लोग है और उस घर की आमदनी ₹100 है, और दूसरा घर है जिसकी आमदनी ₹120 है लेकिन घर में 20 लोग हैं तो भले ही दूसरे घर की ज्यादा आमदनी हो लेकिन पहला घर ज्यादा अच्छे से चल पायेगा।

UK और इंडिया का जीडीपी almost same है लेकिन IMF और world bank  population की वजह से UK को ज्यादा अच्छा मानता है UK और इंडिया का जीडीपी तो same है लेकिन GDP पर capita में बहुत ज्यादा फरक है। UK का per capita 40,000 तक जाता है, और इंडिया का per capita 1900 के around रहता है।

जीडीपी कैल्कुलेट करने के लिए कई सारे फॉर्मूले है

 


 

 

लेकिन इन सब चीज़ो में आपको घुसने की जरूरत नहीं है वो फाइनैंशल एक्स्पर्ट का काम है लेकिन गवर्नमेंट जब आपके सामने जीडीपी का डेटा रखती हैं तो कुछ चीजों का ध्यान आपको रखना है जैसे की nominal GDP,  real GDP, GDP at constant priceहै या फिर GDP at current priceहैं ।

                     जीडीपी दो तरीके से कैलकुलेट होता है एक annually और एक quaterly। 1 साल में चार क्वार्टर होते हैं और जो पहला क्वार्टर होगा वो पिछले साल के पहले क्वार्टर से compare होगा ताकि हम बरसात के प्रोडक्शन को लास्ट ईयर के बरसात के प्रोडक्शन से कंपेर कर सके।. अब 2020 में कोरोना की वजह से 3rd क्वार्टर के जीडीपी रेट बहुत नीचे चला गया था 0.4% तक, अब next year 3rd क्वार्टर को same month से compare करा जाएगा, तो थोड़ी सी भी production से जीडीपी रेट ऊपर पहुँच जाएगा क्योंकि corona time में बहुत नीचे था तो जरूरी नहीं है कि हर बार production की वजह से जीडीपी growth rate ऊपर जाए।. 

                    जीडीपी रेट एक बहुत ही सिंपल तरीके से कैलकुलेट होता है अगर पिछले साल 3rd quarter में जीडीपी 100 था और फिर इस साल 3rd quarter  में जीडीपी 105 है तो जीडीपी रेट होगा 5%।

               GDP की limitation भी है इस में informal sector के डेटा को जोड़ना बहुत ही मुश्किल है और इंडिया में maximum सेक्टर  unorganised है। दूसरी दिक्कत इसमें ये रहती है- sells कंपनीज जो actual में goods and services produced नहीं करती है सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स बचाने के लिए ही खुलती है जिन्हें sells  कंपनी कहते है जीडीपी में काउंट हो जाती है और क्योंकि गवर्नमेंट का फायदा होता है इसे add करने में तो इसको add कर लेती है उसपे कारवाही नहीं करती है 2019 में उसी की रिपोर्ट आई तो पता चला की 36% कम्पनीज़ sells कंपनीज है। मतलब की ये बस टैक्स दिखा रही है मनी लॉन्ड्रिंग कर रही है और एक्चुअल में कोई services या फिर goods produced नहीं कर रही है लेकिन इनका डेटा फिर भी जीडीपी में काउंट हुआ। इस तरीके की tricks हर गवर्नमेंट करती है अपने जीडीपी के डेटा को ऊपर करने के लिए अगर जीडीपी बढ़ेगा तो unemployment कम होगा और क्योंकि गवर्नमेंट जीडीपी डेटा को सही से नहीं रखती है और यही वजह है की इंडिया पहली ऐसी country है जहाँ पर जीडीपी का रेट भी बढ़ रहा है और unemployment रेट भी बढ़ रहा है।

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